वृंदावन से भाजपा सांसद हेमा मालिनी का एक बेतुका और असंवेदनशील बयान एक बार फिर चर्चा में है। उन्होंने साफ तौर पर कहा, “कॉरिडोर तो बनेगा, जिन्हें परेशानी है वो वृंदावन छोड़कर चले जाएं।” यह बयान न सिर्फ वृंदावन की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत का अपमान है, बल्कि उन हजारों स्थानीय नागरिकों के घावों पर नमक भी है जो अपनी गली-मोहल्लों, मंदिरों और संस्कृति को बचाने के लिए लड़ रहे हैं।
हेमा मालिनी की यह भाषा बताती है कि अब सांसद आम जन की प्रतिनिधि नहीं, बल्कि रियल एस्टेट विकास के पक्षधर बन चुके हैं। कितना शर्मनाक है कि वृंदावन जैसे तीर्थ स्थल को एक ‘प्रोजेक्ट’ बना दिया गया है, और जो विरोध करे, उसे शहर छोड़ने की सलाह दी जाती है!
और उससे भी ज्यादा दुखद है कि ऐसे नेताओं को चुनने वाले भोले-भाले लोग, जो कभी कृष्ण भक्ति और ब्रज की सेवा के नाम पर वोट देते हैं।
वृंदावन के लोग पूछ रहे हैं:
“क्या मंदिरों को तोड़कर चौड़ी सड़कें बनाना ही विकास है?””क्या ब्रज की रज, तुलसी और गलियों की पवित्रता अब पांव के नीचे कुचली जाएगी?”
और यह वक्त है बाबा जी की सरकार और विधायकों को भी याद करने का, जिनकी नीतियों और चुप्पी ने आज वृंदावन को इस हालत में पहुंचाया।शर्म आनी चाहिए उन्हें भी, और हमें भी – जो हर बार चेहरा देखकर वोट डाल आते हैं।
“ब्रज बचाओ, ब्रजवासियों को मत भगाओ!”
अब वक्त है आंख खोलने का, नहीं तो कल वृंदावन सिर्फ नक्शे में रह जाएगा– जमीन पर नहीं।