हाथरस/लखनऊ, 3 जुलाई – उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 27,000 से अधिक सरकारी प्राथमिक और पूर्व-प्राथमिक स्कूलों का विलय (merger) करने का फैसला लिया गया है। इसका कारण बताया गया है कि इन स्कूलों में 50 से कम छात्र हैं, और इन्हें पास के स्कूलों में मर्ज किया जा रहा है ताकि संसाधनों का बेहतर उपयोग हो सके।

लेकिन जब हम दुनिया के संवेदनशील लोकतांत्रिक उदाहरणों को देखते हैं, तो यह निर्णय ‘व्यवस्थागत सुधार’ कम और अवसरों की कटौती ज़्यादा लगता है।

दुनिया से सबक:

जापान के होक्काइदो में जब एक बच्ची रोज़ स्कूल जाती थी, तो जापानी रेलवे ने सिर्फ उसके लिए ट्रेन चलाना जारी रखा, जब तक वह ग्रेजुएट नहीं हो गई।

तेलंगाना के आदिवासी क्षेत्र पांडुगुडेम में जब एक लड़की रोज़ 8 किमी चलकर स्कूल जाती थी, तो राज्य सरकार ने उसके लिए फिर से स्कूल खोल दिया।

लेकिन उत्तर प्रदेश में जब छात्रों की संख्या कम मिली, तो स्कूल बंद कर दिए गए — ये कैसा सुधार है जिसमें उम्मीद की आखिरी किरण भी बुझा दी जाती है?

जवाब उन लोगों को जो कहते हैं – “बच्चे ही नहीं हैं तो स्कूल क्यों?”

“कभी एक बच्चा ही पूरे समाज को बदल देता है। सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह शिक्षा को जनसंख्या का नहीं, अधिकार और भविष्य का विषय समझे।”

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