जब जनता समस्याओं से जूझ रही हो – टूटी सड़कें, जलभराव, बेरोज़गारी, लचर स्वास्थ्य व्यवस्था और हर गली में गड्ढा, तब जनप्रतिनिधि कहाँ हैं? जवाब है – फेसबुक पर!
हम बात कर रहे हैं हाथरस की माननीय विधायक जी की, जिनके सोशल मीडिया अकाउंट पर अगर आप 1 मई से 20 मई तक की गतिविधियाँ देख लें, तो लगेगा मानो हाथरस में अब न कोई दिक्कत रही, न कोई जरूरत। क्योंकि वहाँ तो बस है – मालाओं की चमक, उदघाटन की कैंची, श्रद्धांजलियों की कतार, और कैमरे की मुस्कुराहट।
● 1 मई: अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस पर “प्रमाण पत्र वितरण” और संत कबीर का दोहा। अफ़सोस! संत कबीर के उपदेश अगर सच में समझे होते, तो पार्टी की नफरत की राजनीति का “श्रवण शक्ति” खत्म हो चुकी होती।
● 2 से 11 मई: शोक संवेदनाएं, माला पहनने वाले कार्यक्रम, अखबारों को धन्यवाद, संस्कृत के श्लोक, और हाँ, वन नेशन वन इलेक्शन पर फोटोशूट – मानो हाथरस का कोई बड़ा मुददा हो।
● 7 मई: “ऑपरेशन सिंदूर” में ‘प्रधानमंत्री जिंदाबाद’, ‘रक्षामंत्री जिंदाबाद’ के नारों की पोस्ट – और ज़मीनी काम? गायब।
● 17 मई: तिरंगा यात्रा की 14 तस्वीरें – तिरंगे की आड़ में समस्याएं ढँक दी गईं।
● 20 मई: भागवत कथा में टोपियाँ, पटके, फूलमालाओं और 60 से ज़्यादा तस्वीरों का बोलबाला – लेकिन जनता से जुड़ा कोई मुद्दा? नदारद।
कटाक्ष यही है: जनता को योजनाओं, नीतियों और ज़मीनी कार्यों की ज़रूरत है – लेकिन सोशल मीडिया पर “सज्जा-प्रदर्शन” चलता है। फोटो खिंचवाने से विकास नहीं होता। मालाओं की राजनीति का ये दौर शायद कैमरे की फ्लैश में ही चमकता है, ज़मीन पर नहीं।