हाथरस नगर पालिका इन दिनों किसी युद्ध के मैदान से कम नहीं लगती — वजह? नगरपालिका अध्यक्ष श्वेता दीवाकर जी हर काम को “युद्धस्तर पर” करवाने का दावा करती हैं। पर असलियत ये है कि यह सिर्फ शब्दों का युद्ध है, जमीनी सच्चाई तो पानी-पानी है।

शहर का 80% हिस्सा जलभराव से परेशान है। बारिश आते ही हर गली-मोहल्ला तालाब में तब्दील हो जाता है। गड्ढे ऐसे कि मानो धरती खुद नरक का दरवाज़ा खोलने पर तुली हो। पर समाधान? “युद्धस्तर पर नाली सफाई”। अरे दीदी, जब सड़कों पर गड्ढे और सीवर की प्लानिंग ही फेल है, तो सिर्फ नाली साफ करने से क्या विकास बहार निकल आएगा?

आपकी युद्धनीति तो मेला ग्राउंड में भी देखी गई — दशहरे पर पानी निकालने के लिए युद्धस्तर पर पंप लगवाया गया, फोटो खिंचवाया गया, लेकिन मेला ख़त्म होते ही मैदान फिर से तालाब बन गया।

अब आइए भगत सिंह पार्क पर। पूर्व चेयरमैन द्वारा बनाए इस स्मृति स्थल पर आपने झंडा तो बदल दिया, लेकिन जहां “स्मृति स्थल” लिखा था, वो पत्थर ही तोड़ दिया। और वहां लगी घड़ी? वो भी आपकी राजनीति से थककर स्थायी विराम में जा चुकी है। युद्ध का असर सिर्फ शहर पर नहीं, घड़ी पर भी है।

घंटाघर की हालत भी ऐसी ही है — पहले जो कांच लगे थे जिन पर सुंदर वेदों के मंत्र अंकित थे, वे अब टूट चुके हैं। लेकिन उन्हें बदलवाना शायद इतना ग्लैमरस नहीं कि आप उसमें फोटो खिंचवाएं। आपकी राजनीति अब साफ है — ब्यूटी पार्लर से मेकअप करवाओ, ठंडी-ठंडी हवा में खड़े होकर कूल पोज दो और फेसबुक पर अपलोड मारो।

और सबसे शर्मनाक बात ये है कि इस नाकामी को सम्मान देने वाले लोग भी कम नहीं हैं। वो नागरिक, जो इन सबकी वाहवाही कर रहे हैं, असल में हाथरस की बर्बादी में भागीदार हैं। जितनी जिम्मेदार नगर पालिका अध्यक्ष हैं, उससे कहीं ज्यादा जिम्मेदार वे नागरिक हैं जो सवाल पूछने की बजाय सेल्फी में मुस्कुरा रहे हैं।

शहर की जनता को ये समझना होगा कि अगर हम हर दिखावे, हर घोषणा, और हर झूठे युद्धस्तर की बात पर तालियाँ बजाएंगे, तो हमारा शहर कभी असली विकास नहीं देखेगा। हमारी चुप्पी, हमारी सहमति बन चुकी है।

हाथरस में आज विकास नहीं, प्रचार का युद्ध चल रहा है।सड़कों पर गड्ढे हैं, मोहल्लों में पानी,लेकिन नगरपालिका को चाहिए बस कैमरा और कहानी।“युद्धस्तर पर घोषणाएं, लेकिन विकास अपनी कब्र में।”अब फैसला आपको करना है — नेता बदलिए, या खुद को।

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