गुजरात के वडोदरा जिले में बुधवार सुबह का दृश्य भयावह था, जब पादरा-मुजपुर मार्ग पर स्थित गंभीरा पुल का एक हिस्सा अचानक ढह गया। पुल से गुजरते ट्रक, वैन और कारें सीधे महिसागर नदी में समा गईं। अब तक 13 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है और कई घायल अस्पताल में भर्ती हैं।
यह पुल 1985 में बना था, और हाल ही में इसकी मरम्मत की गई थी—फिर भी इतना बड़ा हादसा? यह सवाल सिर्फ तकनीकी विफलता का नहीं, व्यवस्था की सड़ांध का है। स्थानीय लोगों ने पहले ही इसकी जर्जर हालत की शिकायतें की थीं, लेकिन अधिकारियों ने ‘फाइलें घुमाने’ में व्यस्त रहकर आंखें मूंद लीं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने संवेदना जताई और मुआवज़े का ऐलान किया, लेकिन क्या यही काफी है? विपक्षी दलों ने सरकार को घेरते हुए इसे “भ्रष्टाचार और ढुलमुल शासन” का उदाहरण बताया।
देशभर में अरबों रुपये इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च हो रहे हैं, लेकिन ज़मीनी सच्चाई यही है कि पुल गिरते हैं, लोग मरते हैं और जांचें ठंडी फाइलों में दफ्न हो जाती हैं।
आपकी राय क्या है? क्या दोषियों पर सख्त कार्रवाई होगी या फिर ये भी एक और हादसा बनकर रह जाएगा? नीचे कमेंट में जरूर बताएं।