मुंबई में एक बार फिर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) प्रमुख राज ठाकरे ने अपने विवादित बयानों से सियासी हलचल मचा दी है। ANI द्वारा साझा किए गए एक वीडियो में ठाकरे ने कहा कि चाहे कोई गुजराती हो या अन्य, अगर वो महाराष्ट्र में रहते हैं तो उन्हें मराठी आनी चाहिए। हालाँकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि सिर्फ भाषा न बोलने पर किसी को पीटने की जरूरत नहीं है।

मगर उनका अगला बयान विवाद की जड़ बन गया, जिसमें उन्होंने कहा कि “अगर कोई फालतू ड्रामा करता है, तो उसके कान के नीचे मारो। और अगर किसी को पीटो, तो उसका वीडियो मत बनाओ। बस उसे पिटा हुआ दिखने दो, सबको बताने की ज़रूरत नहीं कि तुमने मारा है।”

यह बयान सामने आने के बाद राजनीतिक गलियारों में तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिली हैं। शिवसेना (UBT) को इस बयान का स्रोत बताया गया है। सोशल मीडिया पर कई यूजर्स ने ठाकरे की आलोचना करते हुए इसे “गुंडागर्दी का प्रचार” बताया है, तो कुछ समर्थकों ने इसे मराठी अस्मिता की आवाज कहा है।

इस बयान से साफ है कि राज ठाकरे एक बार फिर “मराठी मानुस” की भावना को हवा देकर राजनीतिक जमीन मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन सवाल ये उठता है – क्या हिंसा और डर की राजनीति आज के लोकतांत्रिक भारत में स्वीकार्य है?

यह बयान आगामी चुनावों और क्षेत्रीय राजनीति के समीकरणों को कैसे प्रभावित करेगा, यह देखना दिलचस्प होगा।

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