उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में हाल ही में एक घटना घटी जिसमें एक यादव जाति के कथावाचक और उनके सहयोगी को कुछ ब्राह्मण युवकों ने जबरन अपमानित किया, उनका सिर मुंडवाया और जातिगत टिप्पणियाँ कीं। यह घटना केवल कानूनी अपराध नहीं, बल्कि हमारी सामूहिक नैतिक विफलता का प्रमाण है।
जब कोई व्यक्ति गीता का पाठ करता है, वह सिर्फ धर्म नहीं, मानवता का पाठ पढ़ा रहा होता है। उस व्यक्ति की जाति पूछकर उसकी श्रद्धा का अपमान करना धार्मिक मूल्यों का ही तिरस्कार है।
हम भूल जाते हैं कि ब्राह्मण और यादव दोनों ही भारतीय समाज के अभिन्न अंग हैं।
• ब्राह्मण ज्ञान, वेद, नीति और चिंतन की परंपरा के वाहक हैं।
• यादव कृषक, कर्मठता, और सामूहिक नेतृत्व के प्रतीक हैं।
दोनों की भूमिका पूरक है, प्रतिद्वंद्वी नहीं।
अगर समाज में ब्राह्मण न हो, तो दिशा न रहे।
अगर यादव न हों, तो क्रियाशीलता ठहर जाए।
जाति के नाम पर किसी को अपमानित करना, उसे धार्मिक क्रियाओं से रोकना — यह केवल अनैतिकता नहीं, बल्कि मानवता का अपराध है।
समाज तभी बचेगा जब हम जाति से ऊपर उठकर चरित्र को पहचानेंगे। हमें यह समझना होगा कि ईश्वर किसी एक जाति के अधिकार में नहीं, वह उस हृदय में निवास करता है जहाँ प्रेम, समर्पण और विनम्रता हो।अब वक्त है – धर्म को हथियार नहीं, सेतु बनाएँ।
✍️ – नैतिक विमर्श पर आधारित विशेष रिपोर्ट